कोई वक्त था कि भारत में जासूसी उपन्यास आठ आना कीमत में छपता था । तब प्रकाशक उसे बहुत ही घटिया कागज पर प्रकाशित करता था और 112 पृष्ठ से ज्यादा छापना अफोर्ड नहीं कर सकता था । फिर ज्यों-ज्यों उपन्या...
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