'क्रिस्टल लॉज' पाठकों की राय में

- मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया से सुधीर बड़क ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को मेरा ‘जमीर का कैदी’ तिकड़ी के बाद से अब तक का सबसे अच्छा उपन्यास बताया है । उन्होंने इस उपन्यास के जरिये मेरी लेखनी के बारे में अपनी राय - जो कि अंग्रेजी में है - जाहिर की है जो कि दिलचस्पी से खाली नहीं है ।

उन की राय उन के अपने शब्दों में :

The beauty of the novel lies in its characterisation and diction of dialogues. Extended court room scenes, which off late you have taken a liking to, work as an icing on the cake.

I would particularly like to salute you for your characterisation of Mukesh Mathur, yet another ‘underdog’ striving against the injustices and incongruities of the modern callous society. It appears as if Mukesh Mathur is now ready to improve his standing from an ‘also ran’ - famous for his ‘cross-talks’ - to a victor in his own right.

While the book will be loved for its mystery, dialogues and the court room scenes, I found this development of Mukesh Mathur the most engrossing aspect of the novel. It feels as if your pen is at its best when depicting the story of an underdog - a common man pitted against the ways of the world. It is as if you are able to identify yourself in these characters, so called ‘underdogs’; and they are able to see the world through your eyes.

Over the years, I have always loved and admired your work, but nothing is more satisfying than seeing one of your characters develop over the course of books. So delighting is your depiction of this ‘underdog’ transformation that I have no hesitation in declaring that you are the ‘top dog’ (excuse the pun) when it comes to depicting an ‘underdog’.

- अहमदाबाद के शिव कुमार चेचानी को ‘क्रिस्टल लॉज’ पढ़ कर ‘मजा आ गया’ उन्हें उपन्यास एक ही बैठक में पठनीय लगा, कहानी जबरदस्त लगी, वाद-विवाद कमाल का लगा । उन्हें सस्पेंस तगड़ा न लगा लेकिन इस वजह से पढने के उन के आनंद में कोई फर्क न आया ।

- मनजीत सिंह वंधेर ने ‘क्रिस्टल लॉज’ की सूरत में बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा लिखने के लिये मुझे बधाई भेजी तथा उपन्यास एवं उपन्यास लेखक दोनों को बेहतरीन करार दिया और आशा प्रकट की कि भविष्य में कभी मुकेश माथुर का मुकाबला गुंजन शाह से होगा क्योंकि दोनों मुंबई में रहते हैं । उपन्यास पढ़ते वक्त हर बार उन्हें लगा कि फलां किरदार कातिल होगा, खयाल बदला, नया कातिल सूझा, फिर खयाल बदला तो फिर नया कातिल सूझा और आखिर में कातिल कोई और ही निकला जब कि उन्होंने दुर्घटनावश हुई मौत की सम्भावना पर भी गम्भीर विचार किया था ।

- दिल्ली के कुलभूषण चौहान को ‘क्रिस्टल लॉज’ शानदार, जबरदस्त, धांसू, तेजरफ्तार और एक ही बैठक में पठनीय लगा । मुकेश माथुर और बड़े आनन्द साहब के बीच हुए डायलॉग उन्होंने खूब-खूब एन्जॉय किये । कोर्ट रूम ड्रामा पढ़ के तो बस मुंह से ‘वाह ! वाह !’ ही निकली । जो कमी उन्हें खली, वो ये थी कि जज द्वारा फैसला सुनाये जाने के वक्त बड़े आनन्द साहब कोर्ट रूम में नहीं थे वर्ना उन की प्रतिक्रिया को जान कर, उन के चेहरे के भावों के बारे में पढ़ कर और मजा आता । दूसरे उन्हें कोर्ट में इंग्लिश के संवादों का कदरन ज्यादा प्रयोग काफी खला जब कि ऐसे लम्बे सम्वादों का हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध न था ।

‘कोटि प्रयास करे कि कोय सत्य का दीप बुझे न बुझाये’ - ये पंक्ति चौहान साहब को झिंझोड़ने वाली लगी, वो इससे इतने प्रभावित हैं कि वो इसे अक्सर अपने मित्रों, परिचितों में दोहराते रहते हैं ।

- गाजियाबाद के मुबारक अली ने ‘क्रिस्टल लॉज’ रात तीन बजे तक एक ही बैठक में पढ़ा जब कि अगला दिन वर्किंग डे था और वो बकौल खुद अगले दिन ऑफिस में निरन्तर जमहाईयां लेते रहे । रात के तीन बज जाने बावजूद उपन्यास के कुछ हिस्से तभी दोबारा पढ़े । उन्होंने उपन्यास को शानदार, जबरदस्त, जिन्दाबाद (!) करार दिया जिस में शानदार कोर्ट रूम ड्रामा एक बड़े ही लम्बे अरसे बाद उन्हें पढना नसीब हुआ । उन्होंने मुझे राय दी कि मैं ‘कोर्ट रूम ड्रामा’ अब नियमित अंतराल से लिखा करूं ।

बंगलिंग एडवोकेट मुकेश माथुर उन्हें उपन्यास में पूरे जलाल पर लगा, जब भी उसकी बड़े आनंद साहब से मुठभेड़ हुई, एक यादगार सीन बन गयी, खास तौर से तब जब मुकेश माथुर आनन्द साहब को कहता है - ‘इतना बड़ा पाखंडी कोई आप जैसा बड़ा आदमी ही हो सकता है’ ।

उन्होंने एक सुपरहिट जासूसी उपन्यास के लिये जरूरी सारे तत्व ‘क्रिस्टल लॉज’ में भरपूर मात्रा में मौजूद पाये, उपन्यास ने न सिर्फ भरपूर मनोरंजन किया बल्कि उसके जरिये जेहनी सकून भी हासिल किया । बकौल उनके, सत्य का दीपक कभी न बुझने वाली बात का जब भी जिक्र आया, तब तब सत्य में गाहे बगाहे विचलित हो जाने वाली आस्था फिर से जागने लगी । उन्होंने खुद को खुशकिस्मत जाना कि ‘बिना कोई मोरल साइंस की क्लास अटेंड किये हमें जीने के लिये जरूरी, बेहद जरूरी, मूल्यों की अहमियत आप की लिखी किताबों से घर बैठे पता चल जाती है, न सिर्फ पता चलती है, बल्कि उन पर अमल करने की इच्छा मन में बलवती होने लगती है’ ।

अंत में उन्होंने यकीन जाहिर किया कि ‘क्रिस्टल लॉज’ एक शाहकार उपन्यास साबित होगा और लोकप्रियता के अगले पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर देगा

आमीन !

- विकी लहंगीर को ‘क्रिस्टल लॉज’ बहुत बहुत पसंद आया । उन्हें सुनील के बाद मुकेश माथुर पसंदीदा किरदार लगा और इंडिपेंडेंट लॉयर के रूप अपने नये जोशोजुनून के साथ उन्हें खूब-खूब पसंद आया और उम्मीद जाहिर की कि आइन्दा उन की मुकेश माथुर से जल्दी मुलाकात होगी, सात साल के अन्तराल से तो हरगिज न होगी । बतौर कोर्ट रूम ड्रामा उन्होंने उपन्यास को भीम का पटधर करार दिया ।

उन्होंने ये भी प्रबल इच्छा जाहिर की कि मुकेश माथुर नकुल बिहारी आनन्द के गुनहगार भतीजे का केस रीओपन करवाए, उसकी बड़े आनंद साहब से इस सिलसिले में कोर्ट में सीधी भिड़ंत हो और भतीजा सजा पाये ।

- गाजियाबाद के नवीन कुमार पाण्डेय ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा करार दिया, पढ़ते वक्त उन्हें ऐसा लगा जैसे वो खुद भी कोर्ट रूम में बैठे हों । उन्हें स्क्रिप्ट बांध कर रखने वाली और आखिर में तो सांसें अटकाने वाली लगी ।

- नीरज झा चौदह साल की उम्र से मेरे पाठक हैं और बकौल उनके मेरा कोई भी उपन्यास पढ के उन्हें कभी नाउम्मीदी न हुई इसलिये ‘क्रिस्टल लॉज’ भी उन्हें खूब पसंद आया । उन्होंने इसे ‘जैम ऑफ अ नॉवल, ब्रेथटेकिंग’ जैसे विशेषणों से नवाजा और उस में और भी वो सब खूबियां पायीं जिन की वो मेरे उपन्यास से अपेक्षा करते हैं । उन्होंने उपन्यास के सस्पेंस को नाकाबिलेबर्दाश्त लिखा, अंदाजेबयां को संतुलित बताया और उपन्यास की रवानगी को सुपरसोनिक स्पीड का दर्जा दिया । उन्हें उपन्यास में स्मार्ट टॉक के खाते में वो खूबियां दिखाई दी जिन्हें वो पहले केवल सुनील सीरीज के उपन्यासों में पाया करते थे । कोर्ट रूम ड्रामा को उन्होंने हाई वोल्टेज ड्रामा करार दिया और आखिर में उसे ऐसी मास्टर जादूगरी बताया जिसे कोई जादूगर ही अंजाम दे सकता था ।

- पराग डिमरी को ‘क्रिस्टल लॉज’ के मोहजाल ने ऐसा जकड़ा कि उन्होंने कई जरूरी कामों को मुल्तवी कर के, नजरअंदाज कर के उसे एक ही बैठक में पढ़ा और इस जिद के तहत अगला सारा दिन उन की आंखें दुखती रहीं । इस सिलसिले में उन्हें बीवी की नाराजगी भी झेलनी पड़ी लेकिन उन्हें हर प्रॉब्लम मंजूर हुई क्योंकि उपन्यास उन की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा उतरा । उन्होंने मेरी भाषा शैली को मेरा ब्रह्मास्त्र बताया जो कि प्रस्तुत उपन्यास में पूरी खूबी, पूरी बानगी से चला ।

बकौल उन के उपन्यास में शुरुआत में ही लेखनी पांचवे गियर में थी, आगे न्यूट्रल कभी आया ही नहीं और ड्राइव भी ऐसी मानो यमुना एक्सप्रेस वे पर सफर जारी हो ।

- नागौर के डॉक्टर राजेश पराशर की निगाह में ‘क्रिस्टल लॉज’ हिंदी में शायद ऐसा पहला उपन्यास है जो कि पूरे का पूरा कोर्टरूम ड्रामा पर आधारित है । ‘क्रिस्टल लॉज’ के कोर्ट रूम सींज पढ़ कर उन्होंने मेरे से सवाल किया है कि मैं लेखक हूं या वकील ! उन्हें कोर्ट रूम की बहस रोचक, पॉइंट टू पॉइंट सारगर्भित लगी तथा डिडक्टिव रीजनिंग अव्वल दर्जे की लगी ।

बकौल उन के, अगर मेरे द्वारा बताये तरीके से मुलजिम से बहस हो और अनुसंधान हो तो सिर्फ दस फीसदी केसों में ही पुलिस को थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करना पड़े - ऐन वैसे ही जैसे अगर मरीज से गहन पूछताछ की जाये तो क्लीनिक परीक्षा डॉक्टर खुद अपने हाथों से करे तो सिर्फ दस फीसदी केसों में ही पैथोलॉजिकल लैब की जांच की जरूरत पड़े । लेकिन, उन्होंने खेद प्रकट किया कि, हकीकतन ऐसा नहीं होता; क्या पुलिस, क्या डॉक्टर सभी नाहक फालतू टेस्ट करते हैं या थर्ड डिग्री आजमाते हैं । नतीजतन यूं राजी किया मुजरिम अदालत में मुकर जाता है और टेस्ट अक्सर गलत हो जाता है ।

‘माइनस’ के खाते में उन्हें ‘क्रिस्टल लॉज’ की कहानी ‘वहशी’ जैसी जटिल न लगी, सस्पेक्ट्स ज्यादा जान पड़े इसलिये किसी पर भी तीखा फोकस न बन पाया । जमा, उन्हें उपन्यास में पृष्ठ कम लगे (376, कम लगे !)

सामूहिक रूप से डॉक्टर साहब ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को पूरे नम्बरों से पास किया ।

- ‘क्रिस्टल लॉज’ के सन्दर्भ में नयी दिल्ली के राज सिंह को शिकायत है कि मुकेश माथुर के पिछले उपन्यास ‘वहशी’ में और प्रस्तुत उपन्यास में गैप - आठ साल का - बहुत बड़ा था जिसकी वजह से उन्हें ‘वहशी’ तलाश कर के पहले पढना पड़ा । इस सन्दर्भ में उन्होंने इस बात को गनीमत जाना कि ‘वहशी’ बतौर ई-बुक न्यूजहंट पर उपलब्ध था ।

‘क्रिस्टल लॉज’ को उन्होंने ‘शानदार, जबरदस्त’ जैसे अलंकरणों से नवाजा लेकिन ‘सस्पेंस’ के महकमे में उपन्यास उन्हें कदरन कमजोर लगा । बकौल उनके असल कातिल को उन्होंने बहुत आसानी से भांप लिया था क्योंकि मैं ही उसकी शिनाख्त छुपाये रखने में नाकाम रहा था ।

उन्हें बड़े आनन्द साहब के कोर्ट रूम में दिए लम्बे लेक्चर खास तौर से शानदार लगे ।

बहरहाल कुल मिलाकर उन्हें ‘क्रिस्टल लॉज’ उन्हें हर लिहाज से पैसा वसूल लगा ।

- पंचकुला के, पेशे से अध्यापक मुश्ताक अली को ‘क्रिस्टल लॉज’ बेहतरीन उपन्यास लगा एक कमी उन्हें खली कि मैंने नकुल बिहारी आनन्द को वो ट्रीटमेंट न दिया जिसके कि वो काबिल था । बकौल मुश्ताक अली, उस का गुरूर मिट्टी में मिलना चाहिये था, उन का वो हश्र चित्रित किया जाना चाहिये था कि वो खुद आकर मुकेश माथुर की पीठ थपथपाते । दूसरे, उन्हें ये भी शिकायत हुई कोर्ट में अधिकतर जिरह सोलंकी ने की, खुद उन्होंने न की ।

उपरोक्त के अलावा उन्हें उपन्यास से कोई शिकायत न हुई, वो उन्हें ‘बैजा बैजा’, दस में से दस अंक पास उपन्यास लगा ।

- जालन्धर के सुभाष कनौजिया ने ‘क्रिस्टल लॉज’ हार्ड कॉपी के बाजार में उपलब्ध होने से बहुत पहले न्यूज़हंट के सौजन्य से उनकी किसी स्कीम के तहत बतौर ई-बुक पांच रुपये में सहज ही प्राप्त करके पढ़ा । लेकिन इस बात की उन्हें वो खुशी न हुई जो वो हमेशा से हार्ड कॉपी के क्रेज और लगाव से हासिल करते हैं । उनकी निगाह में हार्ड कॉपी उपलब्ध होने से पहले बतौर ई-बुक उपलब्ध होना ऐन वैसा है जैसे कि कोई बिग बजट फिल्म सिनेमा रिलीज से पहले टीवी पर दिखाई जाये ।

मैं कनौजिया साहब से पूरी तरह से सहमत हूं और खुद महसूस करता हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिये और मेरी और प्रकाशक की भरपूर कोशिश होगी कि आइन्दा ऐसा न हो । नया उपन्यास बतौर ई-बुक उसके प्रकाशन के बाद नहीं तो बड़ी हद साथ उपलब्ध हो ।

‘क्रिस्टल लॉज’ को उन्होंने ‘शानदार’, ‘जानदार’, ‘जबरदस्त’ जैसे अलंकरणों से नवाजा । उपन्यास के डायलॉग्स को उन्होंने विशेष रूप से सराहा । मुकेश माथुर को नये अंदाज में देखना उन्हें अच्छा लगा, खास तौर से ये बात पसन्द आई कि वो अभी भी नौसिखिया है और अनुभव लेने के लिये संघर्ष कर रहा है । उन्हें इस बात से हार्दिक सन्तोष हुआ कि उसका चित्रण मां के पेट से कानून सीख कर आये अभिमन्यु सरीखा न किया गया । उन्हें ये बात भी बहुत अच्छी लगी कि केस हारने के बावजूद बड़े आनन्द साहब के मान सम्मान में कोई कमी आती न दर्शाई गयी ।

- मेरी प्रबल आलोचक मेरी अपनी सुपुत्री रीमा पाठक है जो कि बैंक में उच्चाधिकारी है और जिसने, अगर आप भूले न हों तो, मेरे विमल के नये उपन्यास ‘जो लरे दीन के हेत’ को ‘ढोढा’ - ऐसी मिठाई जो अन्य मिठाइयों की बचत-खुचत से बनती है - करार दिया था । लेकिन गनीमत है, मेरी खुशकिस्मती है, मेरी मेहनत का फल है कि ‘क्रिस्टल लॉज’ को उसने ‘काजू कतली’ का दर्जा दिया जो कि, आप जानते ही हैं कि, बहुत कीमती, बहुत सुपीरियर मिठाई होती है । उसने ‘क्रिस्टल लॉज’ को अपने पत्र में, जो कि इंग्लिश में था, ‘एक्सीलेंट’, ‘फास्ट पेस्ड’, ‘अनपुटडाउनेबल’ करार दिया और कहानी को सुपर्ब बताया जो कि अपनी रफ्तार में एक बार भी पटड़ी से न उतरी । कोर्ट रूम ड्रामा उसे ‘वैरी वैल रिटन’ लगा और ऐसा अहसास हुआ जैसे कि वो कोई हॉलीवुड की फिल्म देख रही थी । मुकेश माथुर और बड़े आनन्द साहब की कोर्ट में भिड़ंत उसे ‘माइंड ब्लोइंग’ लगी । उपन्यास की शुरुआत के ‘अदरी-बदरी’ वाले बीस पच्चीस पेज तो ऐन ‘वाह वाह’ लगे । ये आधे से पहले भांप चुकने के बावजूद कि कातिल कौन था, उससे उपन्यास बीच में छोड़ा गया और उसने उसे अविकल, एक ही बैठक में पढ़ा । तमाम के तमाम किरदार उसे वास्तविकता के करीब और अपने आसपास ही कहीं विचरते लगे ।

अन्त में ‘नालायक’ पुत्री ने लिखा : ‘गॉड ब्लेस यू विद मोर थॉट्स एंड प्लॉट्स फॉर युअर ग्रेट राइटिंग’ ।

    - नवी मुंबई के डॉक्टर सबा खान ने ‘क्रिस्टल लॉज’ बाकमाल अफसानागिरी और किस्सागोई का दर्जा दिया और आप के खादिम की हौसलाअफजाई के लिये क्या खूब फरमाया कि ‘क्रिस्टल लॉज’ को पढ़ कर अगर कोई मीनमेख निकाले तो वो या तो खुद को दूसरी दुनिया से आया बन्दा समझता है या फिर उसे जासूसी उपन्यास पढना छोड़ देना चाहिये’ । आनन्द साहब के भतीजे का छूट जाना उन के दिल को दुखी कर गया, सुरभि शिन्दे ने दिल को छुआ और मुकेश माथुर तो ‘बस छा गया इस बार’ । पूरे नॉवल के दौरान उन्हें यही लगता रहा कि वो खुद ही कोर्ट में बैठे हैं और उन की आंखों के सामने सारे विजुअल्स चल रहे हैं ।

अन्त में उन्होंने फरमाया कि अगर मेरे ‘ऑल टाइम बेस्ट ट्वेंटी’ नॉवल्स की फेहरिस्त बनाई जाये तो मेरे बहुत से नॉवल्स को ‘क्रिस्टल लॉज’ से कड़ा मुकाबला करना होगा ।

- दिल्ली के हसन अलमास महबूब ने रात को कमरा बन्द कर के, मोबाइल ऑफ कर के, सिगरेट फूंकते सुबह चार बजे तक चली एक ही सिटिंग में ‘क्रिस्टल लॉज’ पढ़ा और बकौल उन के, ऐसा मजा आया जिसे कि वो बयान नहीं कर सकते । कोर्ट सीन उन्हें खास तौर से पसन्द आये । प्लॉट उन्हें बहुत चुस्त दुरुस्त लगा  जिस में कहीं कोई लूप होल नहीं था और पॉइंट को मुकम्मल तौर से एक्सप्लेन किया गया था । उन्होंने उपन्यास को ‘मीना मर्डर केस’ के समकक्ष रखा ।

- कपूरथला के गुरप्रीत सिंह ने ‘क्रिस्टल लॉज’ अपनी भारी दिमागी परेशानी के दौर में पढ़ा और बकौल उन के उपन्यास में ऐसे डूबे कि परेशानी की तरफ से तवज्जो मुकम्मल तौर से हट गयी । उपन्यास उन्हें ‘कमाल का’ लगा और मुकेश माथुर टॉप फॉर्म में लगा । कहते हैं उपन्यास की तारीफ में बहुत कुछ लिखना चाहते हैं लेकिन उन्हें तारीफ के लिये उपयुक्त शब्द नहीं मिल रहे ।

- प्रताप गोस्वामी को ‘क्रिस्टल लॉज’ इतना काबिलेतारीफ लगा कि उन्होंने लेखक की तारीफ भी एक नये तरीके से की; फरमाया कि रहस्य कथा लेखन के क्षेत्र में आज की तारीख में एक से दस तक सिर्फ और सिर्फ मैं हूं । साथ ही उन का सवाल है कि मैंने राजपुरिया साहब के आवास को लॉज क्यों लिखा, बंगला या कोठी क्यों न लिखा ।

गोस्वामी जी, तनहा मकान, जो चारों तरफ से पेड़ों से, फलफूल वनस्पति से घिरा हो, वो लॉज कहलाता है । बंगला कोठी अमूमन बसे हुए शहरी इलाकों में या बसने की ओर अग्रसर इलाकों में - आबादी में होते हैं ।

- मनीष मैथानी ने उपन्यास को पढ़ कर समाप्त करते ही दोबारा फिर पढ़ा और ‘लेखकीय’ उन्हें खास तौर से पसन्द आया । बकौल उन के मेरे हालिया उपन्यासों से उन्हें काफी शिकायतें हुई थीं जो कि ‘क्रिस्टल लॉज’ ने दूर कर दीं । उन्हें उपन्यास का घटनाक्रम शानदार लगा, संवाद, रफ्तार, सस्पेंस सब मनोरंजक लगा अलबत्ता मुकेश माथुर और बड़े आनन्द साहब में सीधे सम्वादों की कमी उन्हें खली । सामूहिक रूप में उन्होंने उपन्यास को ‘वाह वाह’ करार दिया ।

- लखनऊ के मदन मोहन अवस्थी ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को ‘लाजवाब, बहुत खूब, बेमिसाल, बेहतरीन’ जैसे विशेषणों से नवाजा । उपन्यास को पढ़ कर उन्हें अपार तृप्ति की अनुभूति हुई और उन्होंने इसरार किया कि मैं कोर्ट रूम ड्रामा बार बार लिखूं ।

- नेपाल के अमन खान ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को 100 में से 200 नम्बरों से पास किया - 100 नम्बर कोर्ट रूम ड्रामा के लिये जमा 100 नम्बर मर्डर मिस्ट्री के लिये । ‘क्रिस्टल लॉज’ जैसा नायाब उपन्यास मुहैया कराने के लिये उन्होंने हार्पर कॉलिंस का भी तहेदिल से शुक्रिया अदा किया । प्रस्तुत उपन्यास पढने के बाद उन्होंने ‘वहशी’ भी दोबारा पढ़ा जो कि उन्हें पहले पसन्द नहीं आया था लेकिन मौजूदा परिवेश में अब वो भी ‘वाह वाह’ लगा । साथ ही उन्होंने मांग की कि ऐसा पैसा वसूल प्रकाशक को तुरन्त इंग्लिश में उपलब्ध कराना चाहिये ।

- जामियानगर नयी दिल्ली के असद महमूद की राय उन के अपने शब्दों में :

‘क्रिस्टल लॉज’ पढ़ा । एक बार फिर दिल से कहना पड़ा ऐन बैजा बैजा, वाह वाह । हमें इस प्रकार का मनोरंजन देने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया । जमा बधाईयां और शुभकामनायें । आप यूं ही लिखते रहें और हम यूं ही पढ़ते रहें ।

- देहरादून के नरेन्द्र सिंह कोहली ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को जादुई अहसास जगाने वाले उपन्यास का दर्जा दिया और उसे मेरी सशक्त कलम की बड़ी उपलब्धि करार दिया । मुकेश माथुर ने फील्ड वर्क में जो मेहनत की उसने कोहली साहब को खास तौर से पसन्द किया और सुनील की याद ताजा की । बकौल उन के कोर्ट रूम प्रोसीडिंग्स को वो ‘हज्म न कर सके’, जो कि उन्हें ‘बोरिंग लगी, जिन को फील्ड इन्वेस्टीगेशन पर तरजीह नहीं दी जानी चाहिये थी’ ।

- थाईलैंड से ज्ञानेश गदरे को ‘क्रिस्टल लॉज’ में जो बात सब से ज्यादा पसन्द आई, वो ये थी कि कथानक को कोर्ट रूम ड्रामा के तौर पर पेश किया गया था । मुकेश माथुर का बड़े आनन्द साहब से कोर्ट में मुकाबला उन्हें डेविड एंड गोलियाथ सरीखा लगा । कुछ बातों से उन्हें नाइत्तफाकी हुई लेकिन वो उन्हें ऐसी न लगी जो कि कहानी की रफ्तार या गुणवत्ता में बाधा बन सकती । उन्हें कोर्ट रूम ड्रामा ने ही नहीं, उपन्यास में निहित मर्डर मिस्ट्री ने भी प्रभावित किया ।

- चंडीगढ़ के गुरप्रीत सिंह ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को सुपर-सुपरलेटिव डिग्री में पहुंचा दिया, यानी उपन्यास को बेहतरीन नहीं ‘बेहतरीनेस्ट’ करार दिया । उन्होंने उपन्यास को मुकेश माथुर का नहीं, एस. एम. पाठक का जलाल करार दिया, अंदाजेबयां को कमाल बताया । लेखक दिवाकर चौधरी के किरदार में उन्हें मेरा अक्स दिखाई दिया । अलबत्ता लाल बजरी से उड़ी धूल का कमलेश दीक्षित की पतलून के पाहुंचों में मिलना उन्हें हज्म न हुआ ।

- लखनऊ के शैलेश अग्रवाल को ‘क्रिस्टल लॉज’ चुस्त, तेज रफ्तार कोर्ट रूम ड्रामा लगा जिसमें निहित मर्डर मिस्ट्री ने भी उन्हें खूब प्रभावित किया । उपन्यास के अन्त के करीब की प्लाट में ट्विस्ट और क्लाईमैक्स उन्हें खास तौर से पसन्द आया । उन्होंने उपन्यास को ‘नगीना’ करार दिया ।

- शाहदरा, दिल्ली के नारायण सिंह को ‘क्रिस्टल लॉज’ के कोर्ट सीन खूब पसन्द आये, एक लम्बे अन्तराल के बाद मुकेश माथुर से मुलाकात तसल्लीबख्श लगी और उपन्यास की शुरुआत का प्रसंग उन्हें सब से अधिक ‘रोचक और दमदार’ लगा । बड़े आनन्द साहब का सैशन कोर्ट में खुद पेश होना उन्हें रोमांच से भर गया और कमला सारंगी की गवाही का प्रसंग उन्हें सब से ज्यादा प्रभावशाली लगा । उपन्यास के अन्त के करीब के एंटीक्लाईमैक्स को उन्होंने ‘पिक्चर अभी बाकी है दोस्त’ का दर्जा दिया । आखिर में उन्होंने फिर उपन्यास को बेजोड़, लाजवाब, शानदार, दिल को छूने वाला जैसे अलंकरणों से नवाजा ।

- अभिषेक ओझा को उपन्यास ‘शानदार, जबरदस्त, जिन्दाबाद’ लगा लेकिन हीरो मुकेश माथुर से ज्यादा उन्हें बड़े आनन्द साहब ने प्रभावित किया । उन की निगाह में बड़े आनन्द साहब पूरे उपन्यास में (!) जलाल पर थे और उनका हर जगह मुकेश माथुर को बिलिटल करना खूब पसन्द आया । ओझा साहब की राय में उपन्यास में सपन सोलंकी को होना ही नहीं चाहिये था, तमाम केस बड़े आनन्द साहब को खुद हैंडल करना चाहिये था ।

- जौनपुर के अभिषेक बर्नवाल का कहना है कि वो ‘गोवा गलाटा’ से कतई मुतमईन नहीं हुए थे इसलिये ‘क्रिस्टल लॉज’ को पढ़ कर उन्हें ऐसा लगा जैसे सचिन तेन्दुलकर अपने पुराने फॉर्म में लौट आया हो । उन्हें उपन्यास खूब पसन्द आया, कहीं भी, किसी भी प्रसंग ने बोरियत का अहसास न कराया । कुल जमा उपन्यास को उन्होंने A1 क्लास का दर्जा दिया ।

- कुलदीप गुप्ता को ‘क्रिस्टल लॉज’ पढ़ कर ‘मजा आ गया’ । ये बात उन्हें खूब पसन्द आई कि आधे से ज्यादा उपन्यास कोर्ट रूम ड्रामा था । उम्दा लेखन और कहानी के सटीक चयन पर उन्होंने मुझे साधुवाद से नवाजा, अलबत्ता परजुरीज की भरमार के दम पर निखिल आनन्द का कोर्ट से बरी हो जाना उन्हें बहुत खला । उन्होंने सख्त शिकायत की कि दिल्ली में मुकेश माथुर द्वारा की गयी उसकी इतनी मेहनत यूं जाया नहीं जानी चाहिये थी । मुल्क के कायदे कानून की तो, बकौल उन के, यूं खिल्ली ही उड़ाई गयी ।

बहरहाल उन्हें ‘क्रिस्टल लॉज’ फुल पैसा वसूल उपन्यास लगा  और उन्होंने मुकेश माथुर से बहुत जल्द फिर मुलाकात कराई जाने की खास फरमायश की ।

- मनीष पाण्डेय को ‘क्रिस्टल लॉज’ खूब पसन्द आया और उस की तेज रफ्तार ने उन्हें खास तौर से मुतमईन किया । उपन्यास को उन्होंने ‘शानदार’ और ‘जबरदस्त’ जैसे विशेषणों से नवाजा और सवाल किया कि क्या ये महज इत्तफाक है कि हार्पर कॉलिंस से प्रकाशित मेरे हर उपन्यास में कोर्ट रूम सींज जबरदस्त तरीके से उपस्थित हैं !

- जबलपुर के शंकर सरन शिवपुरिया को उपन्यास पसन्द आया लेकिन लगा कि मुकेश माथुर का पिछला परिचय कुछ ज्यादा ही लम्बा हो गया । उन की मुझे राय है कि मैं अपने उपन्यासों की इंग्लिश में लिखने वाले देसी लेखकों सरीखी पब्लिसिटी करूं । मेरा सवाल है मैं कैसे करूं, ये तो प्रकाशक का काम है । प्रकाशक वक्त की जरूरत की बाबत न चेते तो मैं क्या करूं !

- हनुमान प्रसाद मुंदड़ा ने ‘क्रिस्टल लॉज’ के जो फुंदने लगाये, उन की बानगी देखिये ।

लाजवाब । मंत्रमुग्ध कर देने वाला । दिमाग की बेहतरीन खुराक । इतना बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा आज तक नहीं पढ़ा । एक बार शुरु किया तो आखिर तक छोड़ ही नहीं सका ।

- निम्बाहेड़ा, राजस्थान के अरविन्द मीना को ‘क्रिस्टल लॉज’ बैजा, बैजा लगी, सच्चाई के करीब लगी लेकिन मीना साहब इसे एक सिटिंग में नहीं पढ़ पाये क्यों कि कथानक और उसका निर्वाह उन्हें बहुत जटिल लगा । उन्होंने कबूल किया कि आखिर तक वो कातिल का अन्दाजा न लगा पाये ।

- मुक्तसर, पंजाब के सागर खत्री कहते हैं कि उन्होंने ‘क्रिस्टल लॉज’ को इसलिये तीन दिन में पढ़कर खत्म किया क्योंकि उन्हें लगा जैसे बरसों बाद किसी भूखे को उसका भोजन मिला था जिस को उसका स्वाद ले लेकर खाना अनिवार्य था । कोर्ट रूम ड्रामा के वो घोर प्रशंसक हैं इसलिये पढ़ते वक्त उन को लगा जैसे कि वो उपन्यास मैंने खास तौर से उनके लिये ही लिखा था । हर क्षण उन्हें लगा कि मुकेश माथुर जहां भी गया, उसके साथ वो भी थे । माथुर - बड़े आनन्द साहब टकराव तो उन्हें जैसे किसी और ही दुनिया में ले गया । मकतूल राजपुरिया बतौर जिन्दा किरदार कहीं नहीं था, फिर भी वो उन्हें सारे उपन्यास पर छाया लगा ।

- जोरावर सिंह संधू, जो कि पुलिस अधिकारी हैं; ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को शाहकार का दर्जा दिया । उन्हें उपन्यास में सस्पेक्ट्स की भरमार लगी लेकिन इसे उन्होंने उपन्यास की खामी नहीं खूबी जाना ।

- पुनीत दुबे को ‘क्रिस्टल लॉज’ बेमिसाल लगा और उन्होंने अपनी राय को अपनी दिल की आवाज बताया । बकौल उन के, बहुत समय बाद उन्हें एक बढ़िया कहानी पढने को मिली । कमलेश दीक्षित ने कोर्ट से बरी होने के बाद कहानी ने जो पलटा खाया उसे उन्होंने लेखक के मास्टर स्ट्रोक का दर्जा दिया ।

- आनन्द पाण्डेय ने एक परिगणक की तरह ‘क्रिस्टल लॉज’ सम्बन्धी अपनी राय को दस सब-हेड्स में - मिस्ट्री, थ्रिल, सस्पेंस, स्टोरीलाइन, ड्रामा, लैंग्वेज और स्टाइल, डायलॉग्स, हार्डवेयर, साइज़, कैरेक्टराइज़ेशन - में बांटा और सब का एक से दस तक के स्केल पर अलग अलग मूल्यांकन करने के बाद उपन्यास को सौ में से इक्यासी नम्बरों से पास किया । सब से कम नम्बर उन्होंने आपके लेखक को मिस्ट्री में - दस में से चार; और सब से अधिक - 10 में से दस - लैंग्वेज और स्टाइल, डायलॉग्स और हार्डवेयर को दिए । यानी उन्हें कथ्य की रवानगी और शब्द चयन सुपर लगा, डायलॉग्स उपन्यास की खास खूबी लगे, विशेष सराहना उन्होंने मुकेश माथुर और बड़े आनन्द साहब के बीच हुए डायलॉग्स की की और कवर डिजाईन और प्रिंटिंग वगैरह को एक्सीलेंट बताया ।

- मांडवाला, देहरादून के नवल किशोर डंगवाल को ‘क्रिस्टल लॉज’ बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री लगा और ये सिलसिला खास तौर से पसन्द आया कि केस को किसी दक्ष पीडी ने या पुलिस अधिकारी ने नहीं, एक गावदी वकील ने अपना दिमाग इस्तेमाल कर के हल किया । बड़े आनन्द साहब का और मुकेश माथुर का शुरुआती वार्तालाप उन्हें खास पसन्द आया जिस से उन्होंने जाना कि कैसे मर्यादा में रह कर भी एक दूसरे पर तीखे तंज कसे जा सकते हैं । धर्मेश की गवाही उन्हें मनोरंजक लगी और ये बात परम संतोषजनक लगी कि मकतूल अभयसिंह राजपुरिया ड्रग सप्लायर या वुमनाइजर न निकला ।

- धीरज सिंह को ‘क्रिस्टल लॉज’ की रफ्तार से शिकायत हुई । कहते हैं कि हवाई स्पीड वाला ‘गोवा गलाटा’ पढने के बाद उन्हें ऐसा लगा जैसे तांगे में बैठे हों । रफ्तार से से शिकायत के अलावा उन्हें उपन्यास ‘ऐन चौकस’ लगा ।

- नोहार, राजस्थान के रोहिताष चौधरी को ‘क्रिस्टल लॉज’ बतौर मर्डर मिस्ट्री तो पसन्द आया ही, बतौर कोर्ट रूम ड्रामा भी वाह वाह लगा । कहानी उम्दा लगी, कथानक जबरदस्त लगा और शैली हमेशा की तरह मोहक लगी । कथानक में उन्होंने कुछ विसंगतियां नोट कीं जिन्हें उन्होंने ‘दाल में काला’ का दर्जा दिया लेकिन साथ ही मुझे ये कह कर तसल्ली दी कि बाकियों की तो पूरी दाल ही काली है ।

- बिलासपुर के साकेत अवस्थी ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को सस्पेंस के लिये 100% नम्बर दिये लेकिन कोर्ट रूम ड्रामा को 200% दिये । उन्होंने उपन्यास को ‘शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद’ जैसे विशेषणों से नवाजा और कहा कि इस उपन्यास के साथ अब मुकेश माथुर ने अपनी हैसियत सुनील, सुधीर, विमल, जीतसिंह के समकक्ष खड़ा होने की बना ली थी ।

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