कोई वक्त था कि भारत में जासूसी उपन्यास आठ आना कीमत में छपता था । तब प्रकाशक उसे बहुत ही घटिया कागज पर प्रकाशित करता था और 112 पृष्ठ से ज्यादा छापना अफोर्ड नहीं कर सकता था । फिर ज्यों-ज्यों उपन्यास की कीमत बढती गयी, कागज और छपाई में भी सुधार होता गया और एक समय पृष्ठ संख्या 400 तक आम पहुंची । मौजूदा दौर में उपन्यास की कीमत सौ रूपये तक पहुंची हुई है, पृष्ठ 320 और 350 के बीच सीमित हो गए हैं और प्रोडक्शन में प्रकाशक की डंडीमार प्रवृति फिर उजागर होने लगी है ।

उपरोक्त सब समस्याएं तो ई-बुक में हैं ही नहीं और भी बहुत सी एडवांटेज हैं जो कि हार्ड कॉपी में मुमकिन नहीं । अहमतरीन एडवांटेज तो यही है कि ई-बुक में प्रकाशक की कोई धौंस नहीं, कोई दखल नहीं । प्रोडक्शन का ई-बुक में कोई रोल ही नहीं और पृष्ठ संख्या पर कोई कोई पाबंदी नहीं, उपन्यास का कलेवर पृष्ठों के मद में कहीं भी पहुंच जाये कोई दिक्कत नहीं । और सबसे बड़ी बात ये कि लेखक प्रकाशक का मोहताज नहीं ।

दूसरे, प्रकाशक की छापी हिंदी पुस्तक सारे उत्तर भारत में ही ग्राहक तलाश कर ले तो गनीमत है जबकि ई-बुक का वर्ल्ड वाइड रिसैप्शन है । हम हिंदी के राष्ट्रभाषा होने का कितना ही गुणगान कर लें, मेरे सरीखा हिंदी उपन्यास मुख्यत: एम पी, बिहार, राजस्थान और यू पी में ही बिकता है । जब कि मेरी ई-बुक का ग्राहक ऑस्ट्रेलिया में, अमेरिका में, अरब कन्ट्रीज में, जर्मनी में, हांगकांग में, इंग्लैंड में कहीं भी हो सकता है - होता है ।

तीसरे, मेरे अधिकतर पुराने उपन्यास आउट ऑफ प्रिंट हैं और उन के पुनर्प्रकाशन की कोई सूरत मुझे दिखाई नहीं देती जब कि पाठकों को बड़ी शिद्दत से मेरे ऐसे अनुपलब्ध उपन्यासों की तलाश है । मेरे कई मेहरबान पाठकों ने तो दस से बीस रूपये मूल्य में छपे उपन्यासों के 100 से 200 रूपये तक चुकाये हैं ।

पाठकों की ये तलाश बाजारिया ई-बुक्स बड़े आराम से सिरे चढ़ सकती है । निकट भविष्य में धीरे-धीरे मेरे तमाम आउट ऑफ प्रिंट उपन्यास कोबो पर या फिर अब न्यूज हंट पर उपलब्ध होंगे । और उन की सूचना मेरी वेबसाइट के जरिये आप तक पहुंचती रहेगी । न्यूज हंट एक स्थापित कंपनी है जो अभी तक अपनी मोबाइल एप्लीकेशंस के जरिये लोगों तक न्यूज पहुंचाती रही है और अब ई-बुक के क्षेत्र में भी पदार्पण करने जा रही है  । न्यूज हंट अपनी मोबाइल एप्लीकेशन के लिये कई अवार्ड जीत चुकी है और मोबाइल के जरिये न्यूज पढने वालों में काफी पोपुलर है ।

यहां मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि ई-बुक्स ‘इन’ थिंग है जिस के प्रसार को रोका नहीं जा सकता । न ही ऐसे नए माध्यम को नजरअंदाज किया जा सकता है । एक सर्वे के मुताबिक पहले ही 46 % पाठकों की पहली पसंद ई-बुक बन चुकी है और इस आंकड़े में दिन-ब-दिन रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है । लिहाजा मेरी आप से दरख्वास्त है कि आप भी ई-बुक्स अपनायें और पुस्तकों के विस्तृत, विलक्षण संसार में विचरें ।

विनीत

सुरेन्द्र मोहन पाठक

15.11. 2013