सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखे वो सभी उपन्यास जिनमें कोई स्थायी किरदार नहीं होता, थ्रिलर कहलाते हैं । हिन्दी जासूसी साहित्य में बिना किसी सीरीज का उपन्यास लिखना
अमूमन जोखिम का काम समझा गया है । तीन-तीन प्रसिद्ध और व्यस्त सीरीज लिखते हुए भी 70 से ज्यादा Thriller उपन्यास प्रस्तुत करना और उन्हें सीरीज जैसी मकबूलियत दिलाना अपने आप में एक कारनामा है । पाठक साहब के Thriller के अंतर्गत लिखे गए
कुछ किरदार जैसे विवेक आगाशे, विकास गुप्ता, जीत सिंह और मुकेश माथुर के
उपन्यास तो मकबूल सीरीज का दर्जा रखते हैं
।
जासूसी उपन्यास लिखते हुए भी पाठकों को मानवीय भावनाओ से रूबरू करने में पाठक साहब को महारथ हासिल है । उनके मेरी जान के दुश्मन, कोई गवाह नहीं, अनोखी रात और वो कौन थी सरीखे कुछ उपन्यास मानवीय संवेदनाओ से भरपूर हैं । डायल 100, मौत की आहट, कागज की नाव और गवाही सरीखे उपन्यासों में पाठक साहब ने पुलिस तंत्र की खामियों और अच्छाइयों को बड़ी सुंदरता से दर्शाया है । पाठक साहब का हर Thriller उपन्यास अपने में एक दुनिया संजोये, कई किरदार और कई अविस्मरणीय संवाद लिए हुए सर्वदा पठनीय है ।
हालात की गर्दिश ने जीत सिंह का कभी पीछा न छोड़ा। इस बार बमय सामान एक पैसेंजर पकड़ा तो मंजिल पर पहुँचकर पैसेंजर गायब हो गया। सामान की वजह से थाने में हाजिरी भरनी पड़ी। वहाँ सामान का भेद खुला तो..!
ऐसा ही था जीत सिंह उर्फ जीता जो कभी कुछ न जीता फिर भी नाम जीता !
जेवरात का लालच हर नौजवान लड़की को होता है, लिज़ा को भी था। वो हमेशा सपने देखती थी कि उसके सपनों का शहजादा कोई ऐसा शख्स होगा जो उसके हर ख्वाब को हकीकत में बदलने की क्षमता रखता होगा। उसके सपनों के शहजादे को उसका सपना साकार करने लायक बन पाने में चालीस साल लगे।रोमांचक उपन्यास। अनोखी लव स्टोरी।
वह एक पुलिस अफ़सर था। एक थाने का थाना प्रभारी जो ज़ाती रंजिश के तहत अपने मातहत ऑफिसर के पीछे पड़ा हुआ था। उसके पंगेजी मिजाज़ का ये आलम था कि वो खुद को ‘काला नाग’ कहता था जिसका काटा पानी नहीं मांगता था ।
“अपनी तकदीर से शिकवा किया, बुरे वक्त का मातम मनाया, बदनसीबी को कोसा, करोड़ों का माल हाथ लगा, दिल में खुशी की जगह दहशत है, उमंग की जगह अंदेशा है ।”
मैं ऊपर वाले से हमेशा दुआ करता हूं कि ऐ खुदा, तू
मेरे करमों की तरफ न देख, अपनी रहमतों की तरफ देख । कौन होगा मुझ से बुरा इस शहर में, इस जहान में ! फिर
भी मैं उस मुबारक घड़ी की बाट जोहता हूं जब कोई बोलेगा - ‘जा तेरे बनाने वाले ने तेरी तमाम खतायें माफ फरमायीं’ ।
अभय सिंह राजपुरिया अपने बैडरूम में मरा पड़ा पाया गया । कातिल ठहराये गये नौजवान की दुहाई थी: "मैंने कत्ल नहीं किया ।" क्या वो बेगुनाह था ?सुरेन्द्र मोहन पाठक की लेखनी से निकला एक सनसनीखेज कोर्टरूम ड्रामा !
जीत सिंह, ताला तोड़ खुद से, जमाने से, और तो और मौत से भी हारा इंसान था । वो एक हसीना द्वारा ठुकराया, प्यार में खता खाया इंसान था । और अब उसी हसीना ने उससे मदद की गुहार लगाई थी !
ढाई करोड़ रुपये के विपुल धनराशि की सनसनीखेज दास्तान जिसका इकलौता वारिस सात
साल से गायब था और जिसकी तलाश रकम के ट्रस्टियों की तरफ से अपोइन्ट किये गये वकील
मुकेश माथुर के अलावा किसी और को भी थी ।
जीता वो सब था जो खुदा के बनाए इंसान को नहीं होना चाहिए था । वो एक हारा हुआ इंसान था जिसका नाम ही जीता था लेकिन जो जिंदगी में कभी कुछ न जीत सका । वो खोटा सिक्का था ।
जब रक्षक ही भक्षक बने हों तो किसी की पेश नहीं चलती । जिसकी पीठ पर खुद पुलिस हो, उसे झूठा करार देना कोई मजाक नहीं होता । जीत सिंह जैसा कोई शख्स कोई ऐसी बात जुबान पर लाता तो पुलिस लाश का भी पता न लगने देती ।
अपनी इकलौती बेटी की दुर्घटनावश हुई मौत ने देवसरे को ऐसा झकझोर कि उसने दो बार अपनी जान खुद लेने की नाकाम कोशिश की । उसके हितचिंतकों की भरपूर कोशिश थी कि वैसी नौबत फिर ना आये । और फिर देवसरे का किसी ने काम कर दिया ।
जब फांसी की सजा पायी औरत से सरकारी वकील ट्रायल खत्म हो जाने के बाद भी जेल में मिलने जाए, वहां खुफिया मुलाकातें करे और मुजरिम औरत निहायत हसीं और नौजवान हो तो स्कैंडल बने ही बने ।
एक हारे हुए ऐसे इंसान की कहानी जिसका नाम तो जीता था लेकिन उसने अपनी जिंदगी में कभी कुछ ना जीता पाया था ।
एक आदमी, सिर्फ एक आदमी पुलिस को सहयोग देने से न डरा । उस सहयोग की उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । लोग उसके खून के प्यासे बन गए । लोग उसकी जान के दुश्मन बन गए ।
किसी ने यूं ही नहीं कहा कि आस्था प्रमाणों पर आधारित विशवास नहीं है, अपितु अबाध समर्पण का नाम ही आस्था है । लेकिन एक पुलिसवाला, अबाध समर्पण की भावना कहां से लाता । वो भी अपनी बीवी के लिए ।
विकास ने एक कत्ल को अपनी आँखों के आगे होता देखा ! फिर मौकायेवारदात से लाश गायब हो गयी ! अब पुलिस का उसको हुक्म था कि वो लाश को खुद तलाश करे और उसकी शिनाख्त का खुद जरिया बने ताकि कत्ल की बाबत उसकी बात का ऐतबार किया जा सके ।
अनिल पवार की खूबसूरत बीवी एक तूफानी रात को एकाएक घर से गायब हो गयी तो वो उसे उसकी बेवफाई मानकर खामोश न रह सका । तड़प कर जब वो बीवी की तलाश में निकला तो उसकी कोशिशों ने कई लोगों को तड़पा दिया ।
एक ऐसे डबल मर्डर की कहानी जिसको निहित स्वार्थ हत्या और आत्महत्या साबित करने पर तुले थे और उसकी इन्वेस्टिगेशन का जिम्मा एक ऐसे पुलिस ऑफिसर पर था जो अपने आपको जुदा मिजाज का इन्स्पेक्टर बताता था !
वो ड्रग स्मगलर था, ड्रग माफिया का कर्जाई था और कर्जा न चुका पाने की सूरत में उसकी मौत निश्चित थी । अपने भाई की जान बचाने का साहिल के पास एक ही रास्ता था ।
होतचंदानी नहीं जानता था कि उसका दाना-पानी नेपाल से ही नहीं, इस फानी दुनिया से भी उठ चुका था । एक नहीं पांच पापी उसकी जान के ग्राहक बने हुए थे ।
एक सौंदर्य की देवी की आसमान छूती महत्वाकांक्षाओं की दहशतनाक दास्तान जो एक ऐसे शख्स से मुकाबिल थी जो घात प्रतिघात के खेल का शातिर खिलाड़ी था ।
कभी कोई हाकिम उसको ठोकर मारता था, कभी कोई वादाशिकन मोहतरमा उसका दिल निकालकर अपनी जूती से मसलती थी तो कभी कोई कामरेड साहब अपने दुश्मन का शिकार करने का जरिया उसे बनाता था ।
अभियुक्त के खिलाफ क़त्ल का सिक्केबंद केस था, लेकिन उसके वकील की एक ही रट थी - उसका क्लायंट निर्दोष था क्योंकि मकतूल की लाश बरामद नहीं हुई थी ।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से निर्विकार रूप से ये साबित हुआ कि मौत दिल का दौरा पड़ जाने से हुई । लेकिन पुलिस फिर भी संतुष्ट नहीं थी । जब एक जिद्दी इन्स्पेक्टर ने तफ्तीश नहीं छोड़ी तो कई लोगों के छक्के छूट गए ।
खूनखराबे और घातप्रतिघात की एक अनोखी कहानी । एक तड़ीपार कार थीफ की सनसनीखेज दास्तान ।
उस रात कोकिला ने घर में घुस आये एक चोर पर गोली चला दी ! जब उसने मृत चोर की सूरत देखी तो पाया कि वह उसका पति था । क्या कोकिला को क़त्ल का दोषी ठहराया गया ? कैसे उसने अपने पति को चोर समझ लिया ?
क्राइम वर्ल्ड के चक्रव्यूह में फंसे एक ऐसे नौजवान की कहानी जिसने जितना चक्रव्यूह से बाहर निकलने की कोशिश की वो उसमें उतना ही गहरा धंसता चला गया ।
डबल मर्डर की एक पेचीदी, मकड़ी के जले की तरह उलझी दास्तान, जो इन्स्पेक्टर प्रभुदयाल के लिए स्वयं उसके सृजनकर्ता का चैलेंज थी ।
एक नए अंदाज की ब्लैकमेल कथा जो ये सिद्ध करती है कि अगर आदमी हिम्मत ना हारे तो वह कुछ भी करके दिखा सकता है ।
राजा साहब ने एक वसीयत की जिसमे उन्होंने अपनी सारी
जायदाद चंदा के नाम कर दी । अगले दिन करवा चौथ का त्यौहार था, उस दिन चंदा ने बड़ी निष्ठा से व्रत रखा और दिल से अपने पति की शीघ्र मृत्यु की कामना की ।
एक ऐसा षड़यंत्र जिसकी नींव विदेश में रखी गयी । जिसकी चपेट में भारत को लाने के लिए एक खतरनाक आतंकवादी, आर्म्स डीलर, प्रोफेशनल किलर, एक गद्दार इंडस्ट्रियलिस्ट और एक वतन फरोश कर्नल एक ही थैली के चट्टे-बट्टे बने बैठे थे ।
परिवार में एक कत्ल हुआ तो निगम परिवार जैसे संतप्त परिवार बन गया, बन गया । लेकिन परिवार के आठ सदस्यों में आपसी इत्तफाक इतना था कि हर कोई कत्ल का इल्जाम अपने सिर लेने को तैयार था, व्यग्र था । क्या उन में से कोई कातिल था ? हां तो कौन ? नहीं तो कातिल कौन ?
"जिस का होना, न होना एक बराबर हो, वो मैं हूं ।ऐसा ही था जीतसिंह उर्फ जीता जो कभी कुछ न जीता, फिर भी रहा जीता ।
नीलेश गोखले के सामने एक आत्मघाती प्रोजेक्ट की पेशकश थी । क्या उसे मौत के मुंह में कदम रखना मंजूर हुआ ?
एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के लिए क़त्ल तो कर डाला लेकिन, उसकी किस्मत की सुई घड़ी की सुई के साथ जा अटकी । क्या था उस दस मिनट का रहस्य ?
वो गैरमामूली कत्ल था । सरकारी वकील का उसका कोर्ट में ऐसा भयानक खाका खींचने का इरादा था कि सुनने वालों की रूह कांप जाती और उन्हें कठघरे में खड़ा मासूम नौजवान वहशी लगता
।
हाथी जैसे जिस्म और चिड़िया जैसे दिल वाले उस शख्स को लोग उसकी पीठ पीछे रोड रोलर कहते थे । वो एक नौजवान लड़की के इश्क में खता खाया शख्स था जिसे कहीं सुकून हासिल नहीं था : शराब की बोतल में भी नहीं ।
एक गवाही गवाह के नहीं, इन्स्पेक्टर के गले की फांस बन गयी । क्योंकि गवाह खास था ! उसका सगा, मांजाया भाई था जो गवाही से न हिलने की जिद ठाने था ।
कुंदन सेठ यारमारी का शिकार होकर मौत का निवाला बना तो उसके कहरबरपा दोस्त श्याम राव को और कहरबरपा होने का जैसे बहाना मिल गया । उसके जोशेजुनूं के अंधड़ के जेरेसाया सारा शहर कांप गया और फिर कुछ भी साबुत न बचा ।
दुष्यंत कुमार दिल्ली का लोर्ड बायरन
कहलाता था । इसीलिए कई पति और पिता उसकी मौत की कामना करते थे । फिर कोई एक
जना सिर्फ उसकी मौत की कामना करता ही न रह सका, उसने बाकायदा दुष्यंत
परमार की मौत का सामान कर दिखाया । एक कत्ल छः संभावित हल ।
क़त्ल ऐसे हालात में हुआ था कि उसे कोई पिशाचलीला ही समझा जा सकता था क्योंकि कत्ल के वक्त कोई परिंदा भी मकतूल के करीब नहीं फटका था । तो फिर मरने वाला कैसे मरा ?
कोई उसे नशे में समझता था, तो कोई उसके दिमाग में नुक्स बताता था । किसी को उस खून खराबे पर यकीन नहीं आता था जो वो अपनी आंखों से देखा बताता था ।
विकास गुप्ता को चैलेंज किया गया था कि वो
उसके मामा द्वारा छोड़े गए बारह सवालों का जवाब दे और उन बारह सवालों के साथ उसके
मरहूम मामा की छ: करोड़ रूपये की चल और अचल संपत्ति जुड़ी थी ।
वो स्वर्ग की अप्सरा थी । वो अलिफ लैला के किस्से कहानियों की हूर थी । वो एक इन्तेहाई खूबसूरत थी! लेकिन जितनी वो खूबसूरत थी उस से ज्यादा रहस्यमयी थी । जितनी वो रहस्यमयी थी उस से ज्यादा वो खतरनाक थी । वो जहां जाती थी मौत का पैगाम ले के जाती थी ।
वो इतनी खूबसूरत थी कि यकीन नहीं होता था कि कोई इतना खूबसूरत हो सकती थी । लेकिन वो एक खतरनाक मकड़े की ब्याहता बीवी थी । फिर भी डॉक्टर सिंगला उसकी मुहब्बत में गिरफ्तार हुआ ।
पांच जनों के बीच घूमती शक की सुई जब रुकी तो वाही एक पड़ाव बाकी था जिस पर कि वो रुकी । क्या छः जनों में से आखिरी बचा शख्स ही कातिल था ?
पांच दोस्तों की एक साधारण लूट की योजना साधारण ना रह पायी । इस से पहले कि वो सब संभल पाते, उन्होंने पुलिस और गैंगस्टर को अपने पीछे पाया । दोस्तों के बीच विश्वास के उतार चढाव की अनूठी कहानी ।
परमीत मेहरा को रंगीला राजा, मनचला, मजनू कहा जाता था । इसी वजह से कार लेकर दिल्ली की सड़कों पर घूमना उसका पसंदीदा शगल था । फिर एक रोज उसे अपना मैच मिल गया और वो परमीत से परमीत मरहूम बन गया ।
विकास एक शातिर ठग था , लेकिन ना चाहते हुए भी वो एक कत्ल के इल्जाम में फंसा जा रहा था ! ना केवल पुलिस बल्कि स्थानीय गैंगस्टर भी ये चाहते थे कि वो फंसा रहे ! क्या विकास अपने को इस फंदे से निकाल पाया ?
जिस पंछी की नीयत में खोट हो तो बहुत मुश्किल पैदा होती है । इसी खोट ने किसी को पराया पैसा शेयर बाजार में लगाने को और किसी को उम्रदराज शख्स से शादी करने को प्रेरित किया ।
मोटा माल हमेशा हराम की कमाई से हासिल होता है । मेहनत की कमाई से केवल चिड़िया का चुग्गा हासिल होता है । हराम की कमाई का मोटा माल पाने की चाह में कुछ लोगों की जद्दोजहद की दास्तान ।
उसने जिंदगी का जो रास्ता अख्तियार किया था, उस पर आगे भी मौत थी, पीछे भी मौत थी । एक मौत से बचकर भागने की कोशिश में उसे पनाह मिली तो दूसरी मौत की गोद में ।
वो एक तिजौरीतोड़ था जिसकी मां ने उसका नाम जीता रखा था । लेकिन वो कभी कुछ ना जीता, हमेशा हारा । वो जीत का सपना भी देखता था तो हार पहले दिखाई देती थी । ऐसा शख्स दस लाख की रकम का तलबगार था । उस रकम के आगे उसे अपनी दुनिया खत्म होती दिखाई देती थी ।
एक ऐसी तेजरफ्तार कहानी जिसमें हर कोई हर किसी के एक ही अंजाम का ख्वाहिशमंद था लेकिन आखिरकार उस अंजाम तक कौन पहुंचा ?
एक पुलिस अधिकारी की कर्तव्यपरायण मान्यताओं, उसके ऊंचे आदर्शों और पुलिस की नौकरी में खपी उसकी तीन पुश्तों की नेकनामी की गुंडा एलीमेंट से मुठभेड़ से पनपी हौलनाक दास्तान
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हर मुजरिम यही समझता है कि वो नहीं पकड़ा जाने वाला, जो पकडे गए थे वो नादान थे । लेकिन कानून से कोई नहीं भाग सकता, देर सवेर कानून के लंबे हाथ हर मुजरिम की गर्दन तक पहुँचते ही हैं
।
वो खूनी था और फोर्जर था । वो मक्खी मारने के काबिल नहीं लगता था लेकिन बीवी मार चुका था । खोटी चवन्नी चलाने जितना उसमें हौसला नहीं दिखाई देता था लेकिन नोट छपता था ।
एक ऐसे चिड़चिड़े, बेसब्रे, हसद के मारे अपाहिज, उम्रदराज खाविंद की कहानी जो जिंदगी में तो अपनी जवान बीवी को कोई सुख ना दे सका, मर के उसके लिए और भी दुश्वारियां बढा गया !